*पर्यटन नगरी शिवपुरी और यहाँ के प्रागैतिहासिक शैलचित्र* *

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*पर्यटन नगरी शिवपुरी और यहाँ के प्रागैतिहासिक शैलचित्र*
*चुड़ैल छज्जा के 10 हजार साल पुराने शैल चित्र*

 
*चुड़ैल छज्जा के 10 हजार साल पुराने शैल चित्र*

ये शैल चित्र शिवपुरी से 32 km दूर माधव नेशनल पार्क के अन्दर टुंडा भरका जल प्रपात के समीप है । शिवपुरी की भूमि पर प्रागेतिहसिक काल के मनुष्यों के स्मृति चिन्ह शैलचित्र के रूप में आज भी सुरक्षित है।
*सुप्रसिद्ध पुरातत्व विशेषज्ञ श्री रविन्द्र पंड्या के शब्दों- में चुडैल चट्टानो की ये मौन चित्रशालाये तात्कालिक आदिमानव की संघर्षमय कहानी कह रही है।*    
चित्रों के माध्यम से किसी भी बात को समझाने के विचार का उदाहरण शिवपुरी के माधव नेशनल पार्क के उत्तरी भाग में करीब 10 हजार साल पुराने शैल चित्रों में दिखाई देता है। इसमें जनजातियो की दिनचर्या को दर्शाते शैल चित्र मौजूद हैं। 

चुड़ैल छज्जा के नाम से प्रसिद्ध ये विशाल चट्टानें घने जंगल में है  स्थित 
घने जंगल में  छज्जेनुमा विशालकाय चट्टानें हैं और इन्हीं चट्टानों के नीचे ये आकृतियां बनी हुई हैं। छज्जे जैसी आकृति और घने जंगल में होने के कारण ही संभवत: इसे चुड़ैल छज्जा -के नाम से पुकारा जाता है।

जानकार पुरात्तववेत्ता  इस पर अंकित शैल चित्र को करीब 10 हजार साल से भी अधिक पुराने होने की बात कहते है उनका मानना था कि जब मानव सभ्यता विकसित हो रही थी उस समय मनुष्य ने सबसे पहले अपनी बात कहने के लिए शैल चित्रों का ही सहारा लिया। इसके बाद मूर्ति बनाने का क्रम चालू हुआ।

इसमें भोजन, धनुष, हिरण, भालू, सांप और बंदर के अलावा शिकार करने के तरीकों की भी आकृतियां बनी हुई हैं। इन्हें लाल गेरू और पेड़ों के रंग से बनाया गया  बहुत ही कम लोगों को इस बात की जानकारी होगी कि भीम बेटका से भी प्राचीन शैल चित्र शिवपुरी में भी मौजूद है।इस बात की पुष्टि स्वयं भीम बेटका की खोज करने वाले पद्म श्री डॉक्टर विष्णु श्रीधर वाकणकर ने की थी 

चुड़ैल छज्जों में चित्रकला का मुख्य विषय आखेट है । इसके अतिरिक्त सूअर, बारहसिंघों, जंगली भैसों, ज्यामितिक रेखांकन डिजाईन आदि के चित्र यथार्थ रूप में चित्रित करने का प्रयास किया है । गेरूआ रंग आज दिन तक चट्टानों पर अपनी मौलिकता बनाए हुए है । संभवतः चर्बी के साथ गेरू रंग को मिश्रित कर रेखांकन किया हो । यहाँ के कुछ चित्र ताजे रूप में अभी भी चमकते दिखाई पड़ते है । 
चट्टानों के धरातल पर दौड़ते-भागते हिरण, आखेट करती मानवाकृतियाँ विजय सिद्धि के लिये जादू-टोना, स्वास्तिक चिन्ह व हाथ के छापे गेरू रंग से उकेरे गए हैं। एक जगह पर नृत्यरत पुरुषाकृति जिसके हाथ में डमरू है- पशुपति शिव की आकृति है। इस प्रकार ये शैलाश्रय मानव-विकास की आधारभूत कड़ी है। इन चित्रों द्वारा संस्कृति और सभ्यता का बोध होता है। चुड़ैल छज्जों में प्रागैतिहासिक कालीन महत्वपूर्ण चित्रों के असंख्य उदाहरण यहाँ देखने में आये है ।”
चिन्ह शैलचित्रों के रूप में आज भी सुरक्षित है । ये शैल चित्र माधव राष्ट्रीय उधान में टुंडा भरका खो के निकट “चुड़ैलछाज” नामक स्थान पर विद्यमान है । पुरात्तववेत्ता पद्मश्री *स्व.बाकणकर जी भी शिवपुरी पधारे थे और उन्होंने इन शैल चित्रों का अवलोकन कर कहा कि –“मैंने अपने जीवन में इतने प्राचीन शैल चित्र प्रथम बार देखे है।*

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